नई दिल्ली। परमाणु बम बनाने संबंधी गोपनीय जानकारी चुराने और उसे सोवियत संघ को सौंपने वालों में एक नाम क्लॉस एमिल जूलियस का भी आता है। वह जर्मनी का भौतिक विज्ञानी था। उसे इसकी सजा मिली और ब्रिटेन में वह नौ साल जेल में रहा। सजा काटने के बाद जूलियस ने फिर से एक संस्थान नें नौकरी की। वहां से वह सेवानिवृत्त हुआ। साल 1911 में जर्मनी के इस वैज्ञानिक का 76 साल की उम्र में निधन हो गया।    

जूलियस ने तोड़ा विश्वास
एमिल जूलियस भौतिक विज्ञान का विद्वान था। उस पर कई जिम्मेदारियां थीं। मगर वह जासूसी करेगा, यह कोई सोच भी नहीं सकता था। वह कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित था। बाद में वह जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बन गया। जूलियस की विचारधारा जो भी रही हो पर वह परमाणु बैंक परियोजनाओं से जुड़ा वैज्ञानिक था। वह हाइड्रोजन बम बनाने संबंधी सभी जानकारियां रखता था। उस पर ब्रिटेन ने ही नहीं, अमेरिका ने भी भरोसा किया था, मगर इन्हें अंदाज नहीं था कि उनकी परियोजनाओं पर काम करते हुए एमिल जूलियस गोपनीय सूचनाएं सोवियत रूस की खुफिया एंजसी केजीबी को दे देगा।  

सोवियत रूस ने बढ़ाई बढ़त
जूलियस ने भौतिकीशास्त्र में पीएचडी की थी। वह अपनी विद्वता के बूते इंग्लेंड में परमाणु बम परियोजना ‘ट्यूब अलॉयज’ का हिस्सा बन गया। इस दौरान इंग्लैंड अपने कई नए हथियारों पर अनुसंधान कर रहा था। ये सारी सूचनाएं जूलियस ने सोवियत रूस के पास पहुंचा दीं। यही कारण है कि रूस हाइड्रोजन बम बनाने में अमेरिका और अन्य देशों से आगे निकल गया। यानी रूस दुनिया में हाइड्रोजन बन बनाने वाला पहला देश बन गया।

ऐसा कैसे संभव हुआ
दरअसल, जूलियस इंग्लैंड में काम करने के दौरान कई देशों की हथियार परियोजनाओं से न केवल जुड़ा था बल्कि उन पर नजर भी रखता था। एक समय ऐसा आया कि बतौर परमाणु विज्ञानी उसे अमेरिका में भी काम करने का मौका मिला। यही वह समय था जब उसने अमेरिका की हाइड्रोजन बम परियोजना की जानकारी सोवियत रूस को दे दी। जूलियस ने यूरेनियम उत्पादन का पूरा आंकड़ा इससे संबंधित योजना की पूरी जानकारी खुफिया जासूसी एजंसी केजीबी को सौंप दी। इस तरह सोवियत रूस परमाणु हथियार मामले में अमेरिका से आगे निकल गया।

बुरे काम का बुरा नतीजा
कहते हैं जब आप कोई बुरा काम करते हैं, तो एक न एक दिन पकड़े जाते हैं। जूलियस की करतूत भी सामने आ गई। वह जैसे ही अमेरिका से लौटा, उसे इंग्लैंड में पकड़ लिया गया। उससे केजीबी जासूसों के नाम पूछे गए जिनको उसने गोपनीय जानकारियां दी थीं। उसने कबूल किया कि उसने 1942 से लेकर 1949 तक खुफिया सूचनाएं सोवियत रूस को दीं। जूलियस को इस विश्वासघात की सजा दी गई। उससे इंग्लैंड की नागरिकता छीन ली गई। जूलियस को 14 साल की सजा सुनाई गई। मगर उसे नौ साल तक जेल में रखने के बाद उसे रिहा कर दिया गया।

 जूलियस ने एक बार फिर से अपना करिअर शुरू किया। कुछ समय बाद वह विज्ञान अकादमी का सदस्य चुना गया। उसे सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ फिजिक्स का उप निदेशक बनाया गया। जूलियस 1979 में सेवानिवृत्त हो गया। साल 1988 में उसका निधन हो गया।    

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