नई दिल्ली। अगर दुनिया में किसी कम उम्र की जासूस का जिक्र होगा तो सरस्वती राजमणि को जरूर याद किया जाएगा। महज दस साल की उम्र और देश के लिए इतना बड़ा जज्बा कि स्वयं महात्मा गांधी भी हैरान रह गए थे उससे मिल कर। रंगून के समृद्ध परिवार में जन्मीं सरस्वती को छोटी उम्र में ही अहसास हो गया था कि अंग्रेज भारतीयों पर राज करके हुए देश को लूट रहे हैं। देशभक्ति की इस भावना ने ही आगे चल कर सरस्वती को स्वतंत्रता आंदोलन का योद्धा बनाया।

आईएनए में बनीं जासूस
आजादी का आंदोलन परवान चढ़ने लगा था। एक दिन सुभाष चंद्र बोस का भाषण सुनने के बाद सरस्वती ने अपने सभी गहने आजाद हिंद फौज को समर्पित कर दिए। उसकी निश्छलता और बालपन की भावना को महसूस करते हुए नेताजी उसके गहने लौटाने गए तो सरस्वती ने वापस लेने से इनकार कर दिया। उनकी देशभक्ति के जज्बे को देखते हुए महज सोलह साल की उम्र में उन्हें आईएनए की खुफिया इकाई में जासूस नियुक्त किया गया। सरस्वती के साथ उसके चार साथियों को भी खुफिया इकाई में भर्ती कर लिया गया। इसके बाद सरस्वती और उसके साथियों ने वह काम किया जो अमूमन इतनी छोटी उम्र की लड़कियों से उम्मीद नहीं की जाती।

आजादी की गुमनाम नायिका
स्वतंत्रता आंदोलन की इस गुमनाम नायिका को कम ही याद किया जाता है। आजाद हिंद फौज के गठन के बाद सुभाषचंद्र बोस के साथ हर कदम पर साथ चलने वालीं और उनके हर आदेश का पालन करने वाली सरस्वती राजमणि आजादी के आंदोलन में एक ऐसी क्रांतिकारी हैं जिनके योगदान को देश भुला नहीं सकता। उन्होंने अपनी एक सहेली और सहयोगी जासूस दुर्गा के साथ मिल कर कई अहम जानकारियां आजाद हिंद फौज को निरंतर दीं। इससे आईएनए को अंग्रेजों की हर हरकत की सूचना मिलने लगी।

सरस्वती ने अपनी पहचान छुपा कर अंग्रेज अधिकारियों के घरों में काम किया। जासूसी करने के लिए वे लड़के का भेष बना लेती थीं। लड़के की तरह अपना नाम मणि रख लेती थीं। एक बार अंग्रेजों ने उनके एक साथी को पकड़ लिया। तब सरस्वती ने अंग्रेज कर्मचारियों को बेहोश कर उसे छुड़ा लिया। जब वे भाग रही थीं तो सुरक्षाकर्मी ने उनके पैर में गोली मार दी। ऐसी तमाम घटनाओं से नेताजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सरस्वती को झांसी रानी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट नियुक्त कर दिया।

जाबांजी की दास्तां
सरस्वती राजमणि की पूरी जिंदगी जाबांजी की दास्तान है। वे जब दस साल की थीं तभी से बंदूक से खेलने लगी थीं। गांधीजी जब उनके देशभक्त परिवार से मिलने गए तो तब सरस्वती से मिल कर खुश हुए। तब उन्होंने बापू से कहा था कि ‘अंग्रेज हमें लूट रहे हैं। एक दिन उनको मार कर भगाऊंगी।’ कुछ सालों बाद उनके जज्बे का सम्मान करते हुए आजाद हिंद फौज में काम करने का मौका दिया। जिसे सरस्वती ने पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाया।

आजादी के बाद भारत लौटीं
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सरस्वती राजमणि ने ब्रिटिश सैन्य अड्डे की जासूसी की। उनकी भेजी जानकारियों से आजाद हिंद को बढ़त मिली। जब नेताजी ने विश्व युद्ध खत्म होने के बाद आईएनए  भंग कर दी तब वे फौज की सेवाओं सें मुक्त हो गईं। आजादी के बाद यह 1957 का समय था जब वे अपने परिवार के साथ भारत चली आर्इं। उस आजाद भारत में जहां अंग्रेज नहीं थे, जिन्हें भगाने का उन्होंने सपना देखा था। इसके बाद उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति दान कर दी।

एक जनवरी 1927 को जन्मीं सरस्वती राजमणि भारत में लंबे समय तक अपने परिवार के साथ रहीं। उन्होंने अपनी वर्दी और मेडल कटक स्थित सुभाषचंद्र बोस संग्रहालय को समर्पित कर कर दिया। अंतिम समय वे चेन्नई में अपना जीवन पेंशन के सहारे गुजार रही थीं। साल 2018 में उन्होंने अंतिम सांस ली।  

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