नई दिल्ली। सीआईए दुनिया की सबसे कद्दावर एजंसी हैं। यह आज भी प्रतिद्वंद्वी देशों के खिलाफ काम तो करती ही है, वहीं विश्व में आतंकवाद के खिलाफ और वैश्विक सुरक्षा जैसे मसले पर खुल कर काम करने के लिए तैयार रहती है। सीआईए के जासूस दुनिया भर में फैले हुए हैं। यह एजंसी अमेरिकी राष्ट्रपति और सरकार के किसी भी खास अभियान के लिए तमाम सूचनाएं जुटाती है। गुत्थियां सुलझाती है। मगर समय के साथ इसकी पकड़ ढीली हो रही है, यह उसके लिए चिंता का विषय है।
सीआईए का गठन 1947 में हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पर दस्तखत किए थे। तब से लेकर आज तक सीआईए ने अमेरिकी सरकार के अभियानों को अंजाम तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि इस क्रम में उसने कुछ देशों की सरकारें गिराने और उसे उचित ठहराने में पीछे नहीं रही। यह एजंसी हर बार अपना ‘टारगेट’ तय करती है जैसा कि दुनिया ने अफगानिस्तान में देखा। मगर अमेरिका को जिस तरह अफगानिस्तान से निकलना पड़ा, उससे लगा कि यह न केवल उसकी नीतियों की हार है बल्कि उसकी खुफिया एजंसी भी मात खा रही है।
इसी दुनिया ने शीतयुद्ध देखा जब दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका सीधे तौर पर तो नहीं लड़ रहे थे मगर उनके बीच तनातनी थी। इसे छद्म युद्ध के रूप में देखा गया। दोनों देशों के बीच यह रंजिश 1947 लेकर 1991 तक चली। यह पूरी तरह वैचारिक और भूराजनीतिक संघर्ष था। द्वितीय विश्वयुद्ध से अगर आगे बढ़ें तो ट्रूमैन सिद्धांत की स्थापना के साथ शुरू हुआ और यह सोवियत संघ के पतन के साथ समाप्त हुआ।
सीआईए ने यूं तो कई गोपनीय अभियानों को अंजाम दिया है। मगर अब दुनिया के शीर्ष देशों की खुफिया एजंसियां सीाईए को भी मात दे रही हैं। कोई साल भर पहले की बात है जब चीन ने सीआईए एजंट का पर्दाफाश किया था। दरअसल, सैन्य औद्योगिक समूह के लिए काम करने वाले एक चीनी नागरिक को संवेदनशील खुफिया जानकारी देने के लिए काफी धन देने के साथ अमेरिकी नागरिकता की पेशकश की गई थी।
जेंग नाम के एक शख्स को उच्च शिक्षा के लिए इटली भेजा गया था, जहां उसका अमेरिकी दूतावास के अधिकारी से परिचय हुआ। बाद में जेंग उसका जासूस बन गया। उसने चीन लौटने से पहले जासूसी का प्रशिक्षण लिया। यह पता चलने पर चीन ने निगरानी बढ़ाई। जेंग के खिलाफ कदम उठाए गए। इसके बाद चीन ने जासूसी विरोधी कानून पेश किया।
चीन की सतर्कता और जासूसी विरोधी कानून बनने के बाद अमेरिका की चिंता तो बढ़ी ही, वहीं उनके लिए जासूसी कर रहे चीनी एजंटों के लिए भी मुश्किल बढ़ गई। दुनिया की कद्दावर एजंसी की पकड़ ढीली हो रही है। हाल में ही एक खबर आई कि अमेरिकी सरकार अपनी सेना के नेटवर्क में चीन के वायरस का पता लगा रही है। कहा गया कि अगर इसका पता नहीं लगा तो युद्ध के दौरान अमेरिका का ऊर्जा, संचार, जल आपूर्ति नेटवर्क ठप हो सकते हैं। अमेरिका के दुनिया भर में सैन्य अड्डों में भी इस वायरस होने का अंदेशा है। सीआईए फिलहाल इसका पता नहीं लगा पाई है।