अंजू खरबंदा

पापा जी बताते हैं कि मेरे पैदा होने पर नानाजी फरीदाबाद से ढोल बजाते हुए आए थे कि उनकी नातिन हुई है। मामाजी ने तो खूब भारी चांदी की पाजेब बनवाई थी मेरे लिए… जो आज भी मेरे पास बहुत सहेज कर रखी हुई है।

मेरे नानाजी की हलवाई की दुकान थी, जब मां मायके जाती तो नाना जी को लड्डू बनाते देख मैं भी उन्हें नकल करती और अपने हाथों से लड्डू बनाने की कोशिश करती, इस प्यारी सी अदा पर सभी खुशी से निहाल हो जाते और एक एक को बताते कि देखो नाना की नातिन भी अभी से लड्डू बनाने लगी। … पापा जी आज भी ये बातें बहुत जोश-खरोश से सभी को बताते हैं।

नानी तो मम्मी की शादी के कुछ दिनों बाद ही चल बसी थीं, उनके जाने के बाद नाना जी भी अधिक समय तक नहीं जिए।  इस तरह नानके के नाम पर कहने को रह गए दो मामा-जीवन कटारिया और तिलक कटारिया… लेकिन वास्तव में हमें भरा-पूरा नानका परिवार मिला। मेरी मम्मी के मामा हमारे मामा थे, उनके चाचा हमारे चाचा, उनकी मासियां हमारी मासियां और उन सभी के बच्चे हमारे मामा मासी।

जब नानके जाते तो सभी बच्चे आपस में मिलने पर गिनते- हमारे सैकड़ों मामा सैकड़ों मासियां!  सीना गर्व से चौड़ा हो उठता। मम्मी की दो मासियां और मामियां ही हमारी नानी के रूप में हमें मिली, खूब लाड़ लुटाने वाली। मिलते ही अपने अंक में भर लेतीं, अपने स्नेह से हमें लबालब सराबोर कर देती। कितना सुकून मिलता उन बांहों में समा कर… शब्दों में वर्णन करना कठिन है। नानी तो नहीं देखी मगर परनानी जरूर देखी। मम्मी के मामा जी की केमिस्ट की दुकान थी, उनकी दुकान पर जाने पर डाकी यानी दस पैसे खर्ची मिला करती थी। उस समय दस पैसे बहुत हुआ करते थे, ढेर सारी चीजें आ जाती थी दस पैसे में।

मम्मी के चाचा जी व उनके बच्चे तिलक नगर में रहते हैं। बचपन में मम्मी के साथ उनके घर रहने जाती तो बड़ा ही आनंद आता, मम्मी के चाचा-चाचियों से हमें खूब प्यार दुलार मिला और उनके बच्चों से भी। तिलक नगर की गलियां आज भी याद है। गली के बाहर ही चाचा जी की कपड़े की दुकान थी, वापसी पर उनकी दुकान से सैकड़ों थानों में से छांट कर अपनी पसंद का सूट मिलता और सूट व सगन दे जल्दी ही अगली बार आने का वादा लेकर विदा किया जाता।

कभी लगा ही नहीं कि ये मम्मी के चाचा, मामा, मासी हैं। उन पर हमारा उतना ही अधिकार था जितना मम्मी का। उस समय न तेरी-मेरी थी न कोई चालाकी-चतुराई! मेरी मां बेहद ही सरल स्वभाव की थी, जल्दी ही सभी के दिलों में बस जाने वाली। फिर पता नहीं भगवान ने उन्हें इतनी जल्दी क्यों अपने पास बुला लिया!

(अंजू खरबंदा लघुकथाकार और संस्मरण लेखक भी)

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *