नई दिल्ली। महिलाएं क्या नहीं कर सकतीं। वे बेहतरीन और भरोसेमंद जासूस भी हो सकती हैं। यह 1914 का दौर था। प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। जर्मनी आक्रामक हो चुका था। उधर, ब्रिटेन को सेना और हथियारों के साथ जासूसों को भी जरूरत थी। उसने तब महिलाओं पर भरोसा किया। उसी दौर में लुईस और गैब्रिएल पेटिट जैसी महिलाओं ने उसके लिए जासूसी की। इन्होंने उसके दुश्मन राष्ट्रों की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।

फ्रांस के लिली में जन्मी लुईस असाधारण रूप से मेधावी और चालाक थी। वह अंग्रेजी के साथ पांच भाषाएं धाराप्रवाह बोलती थी। अंग्रेजों ने वहां जर्मनी की जासूसी के लिए लुईस को नियुक्त किया। इस महिला जासूस ने टिशू पेपर पर अदृश्य स्याही से लिखना और खोखली चीजों में संदेश बना कर छुपाना सीखा था।

लुईस लघु मानचित्र बनाने में पारंगत थी। उसने अपने मानचित्र कौशल का इस्तेमाल कर उसमें दो हजार बंदूकों की स्थिति दिखाई। इसमेें जर्मनी की जगह-जगह मौजूदगी को मानचित्र में दर्शाया। जर्मन सेना ने तब इस 40 किलोमीटर के दायरे को शापित क्षेत्र कहा, क्योंकि इसी जगह उसे हवाई बमबारी का सामना करना पड़ा। हालांकि लुईस की ओर से दी गई जानकारियों को अंग्रेजों और फ्रांस ने दरकिनार कर दिया। इस महिला जासूस को 1915 में पकड़ लिया गया। उस पर अगले साल मकदमा चलाया गया। जर्मन अदालत ने लुईस को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। मगर 1917 में उसे गंभीर रोग हो गया। युद्धविराम से पहले 27 सितंबर 1918 को उसकी मौत हो गई। लुईस को मरणोपरांत सम्मान मिला। न केवल फ्रांस ने बल्कि अंग्रेजों ने भी सैन्य सम्मान दिया।

इसी दौर में महिला जासूसों में गैब्रिएल पेटिट का नाम भी आता है। जर्मनों का कब्जा बढ़ता जा रहा था। एक दुकान पर काम करने वाली युवा गैब्रिएल इससे बहुत आक्रोश में थी। वह अपने आसपास के क्षेत्र में जर्मन सैनिकों की गतिविधियों के बारे में अंग्रेजों को जानकारी देना चाहती थी। आखिर वह दिन आ ही गया, जब ब्रिटिश अफसरों ने जुलाई 1915 में लंदन स्थित स्पाई स्कूल में उसे बुलाया। वहां से लौट कर गैब्रिएल ने अपना जासूसी नेटवर्क तैयार किया। इसके बाद वह मित्र राष्ट्रों के लिए गोपनीय जानकारी और सूचनाएं जुटाने लगी।

आखिरकार गैब्रिएल को 20 जनवरी 1916 को हिरासत में ले लिया गया। उसे ब्रसेल्स के सेंट गाइल्स जेल में डाल दिया गया। हर बार की पूछताछ में वह जर्मनी के प्रति घृणा और आक्रोश का इजहार करती। जर्मनी में उस पर मुकदमा चला। इस दौरान वह फ्रेंच में ही अपना पक्ष रखती। सुनवाई के बाद उसे फायरिंग स्क्वाड द्वारा मौत की सजा दी गई। प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद मित्र राष्ट्रों ने अपने जांबाज सैनिकों के साथ उन जांबाज जासूसों को भी याद किया जिनके बिना वे शायद ही युद्ध जीत पाते। यहां तक कि बेल्जियम ने भी किसी ने नहीं सोचा था कि ब्रसेल्स में एक दुकान में काम करने वाली एक सहायक शहीद का दर्जा पाएगी।

मई 1919 में गैब्रिएल का शव कब्र से निकाला गया। फिर एक सम्मानजनक अंतिम संस्कार के बाद बेल्जियम की रानी ने गैब्रिएल को ‘क्राइक्स डे ल’ आॅडे डी लियोपोल्ड’ से सम्मानित किया। इस महिला जासूस की प्रतिमा आज भी ब्रसेल्स प्लेस सेंट पर लगी है। वह आते-जाते नागरिकों को देखती है। गैब्रिएल पेटिट याद दिलाती है कि कोई कितना भी कमजोर हो, वह देश के लिए कुछ न कुछ कर सकता है।

तस्वीर : ब्रसेल्स प्लेस सेंट पर लगी जासूस गैब्रिएल पेटिट की प्रतिमा। 

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