-डॉ. परमजीत ओबेरॉय

बहुत रोने का मन करता है-
मां, आपसे मिलने का जी करता है।
बहुत दिन हो गए
दिन नहीं वर्षों हो गए,
अब तो आ जाएं-
मुझे मिलने,
अकेले जान मन अस्थिर होता है,
हाँ, माँ आपसे मिलने का जी करता है।

थक गई हूँ
जीते-जीते,
आपके साथ बातें,
करने का जी करता है।
हाँ, मां,
आपसे मिलने का जी करता है।

जानती हूँ आप नहीं आएंगी
किंतु न जाने क्यों,
मन अपना ही इस झूठी इच्छा से-
बहलाने का जी करता है
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।

बहुत मुश्किल हो गया है
अब खुश रहना,
दिखावी मुस्कान से-
मुँह मोड़ने का मन करता है,
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।
स्वयं माँ हूँ
जानती हूँ,
जाना है आपकी तरह
किंतु संतान अपनी को
छोड़ने से मन डरता है,
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।

क्या मेरे बच्चे भी-
ऐसा सोचते होंगे,
सोच-सोच के जीने का मन करता है,
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।
दिन कटता है-
याद कर-करके आपको,
बेटी आपकी हूँ सोच कर
मन गर्व करता है,
किंतु आपसे मिलने का जी करता है।

काश आ जाएं आज
सपने में मेरे,
इच्छा कर फिर घबरा कर कि
सपना सच होगा या नहीं,
जाग-जाग के  
आपको सोचना अच्छा लगता है,
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।

जीवन एक नाटक है-
हम पात्र है यहां,
जान कर भी अनजान-
जाने क्यों होने का,
तर्क न समझ आता है
बहुत रोने का मन करता है,
हाँ, मां आपसे मिलने का जी करता है।

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