-पल्लवी गर्ग

कई दिन से खोज रही
बंसी उसकी,
जब देखो छुपा देता है!

श्यामल वर्ण,
मोरपंख,
मधुर मुस्कान,
नटखट नयनों से
कहीं अधिक प्रिय है मुझे,
मेरा नाम टेरती
बंसी!

बंसी से मेरा प्रेम देख
बिन अग्नि ही जलता है कान्हा,
हैरान करने के नित नए बहाने
तलाश ही लेता है कान्हा,
मैं बावरी सी ढूंढती बंसी
कुटिलता से मुस्काता है कान्हा!  

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