नई दिल्ली। विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। बेल्जियम पर जर्मनी हमला कर चुका था। यह उन्हीं दिनों की बात है। यानी 1914 की गर्मियों की। तब मार्था एक चिकित्सक बनने के लिए प्रशिक्षण ले रही थी। वह बेल्जियम के राउलर्स में अपने घर के पास जर्मन सैन्य अस्पताल में नर्स नियुक्त किया गया। इन्हीं दिनों ब्रिटेन के एक खुफिया अधिकारी ने उसे जासूस बनने का प्रस्ताव दिया।
मार्था एक व्यावहारिक युवती होने के साथ देशभक्त भी थी। जासूस बनने का प्रस्ताव उसने इसलिए भी मान लिया क्योंकि वह बेल्जियम के प्रति अपनी वफादारी जताना चाहती थी। उस प्रस्ताव के बाद मार्था को जर्मनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण रेलवे स्टेशन के पास सेना की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया। यह मार्था की जानकारियां ही थी, जिसके आधार पर मित्र राष्ट्रों ने उस रेलवे स्टेशन पर भारी बमबारी की। आसपास के क्षेत्रों में खासा नुकसान पहुंचाया।
साल 1915 के फरवरी-मार्च में हुए मित्र राष्ट्रों के हवाई हमले के बाद हर जगह धुआं-धुआं हो गया। कई बुनियादी ढांचे खंडहर में बदल चुके थे। मार्था ने इसका जिक्र किया है कि वह अंतहीन सड़कों पर भटकती थी। उन रास्तों पर क्षत-विक्षत लाशें बिखरी थीं। उनकी आंखें घूरती रहती थीं।
जिस अस्पताल में मार्था नर्स का काम कर रही थी, वहां घायल लोग पहुंचने लगे। मगर 22 अप्रैल 1915 को पहले गैस हमले के बाद पीड़ितों की हालत खराब थी। इन की कैसे मदद की जाए। यह किसी को समझ नहीं आ रहा था। लेकिन अपने स्तर पर मार्था जितना कर सकती था, उसने किया। उसने अस्पताल में कई बार 24-24 घंटे काम किया। इस समर्पण के लिए मार्था को जर्मनी ने भी सराहा। उसे जर्मन आयरन क्रॉस दिया। यह उसे वुर्टेमबर्ग के राजा ने प्रदान किया।
इसके बाद जर्मन सेना ने मार्थ को उनके जासूसी करने की पेशकश की। मगर मार्ता ने इससे इनकार कर दिया। मगर इसके बाद वह दुर्भाग्य से जर्मनों के जाल में फंस गई। नवंबर 1916 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद उसे जासूसी करने का दोषी करार दिया गया। उसे मौत की सजा सुनाई गई। राउलर्स सेना अस्पताल के मुख्य चिकित्सक ने उसके बचाव में पक्ष रखा। उनकी ओर से दी गई दलील के बाद मार्था की सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई।
पहला विश्व युद्ध खत्म हुआ तो ब्रिटिश जनरल सर डगलस हैग ने एक फाइल में मार्था का जिक्र किया। फ्रांस और बेल्जियम ने भी मार्था के कार्यों का उल्लेख किया। विश्व युद्ध में शामिल कुछ देशों ने उसके कामों को सलाम किया और सम्मानित भी। मार्था को आज भी याद किया जाता।