अतुल मिश्र
रामभरोसे लाल दस्तों को भी गुप्त रोगों में ही शुमार करते थे और उनका मानना था कि गुप्त रोग को हमेशा गुप्त रूप से ही किसी गुप्त रोग विशेषज्ञ को गुप्त रूप से दिखाना चाहिए। होली की बासी मिठाइयों से उत्पन्न दस्तों को रामभरोसे ने पूरी गंभीरता से लिया था और पूरी रात शौचालय में गुजारने के बाद वे डाक्टर के सामने बैठे अपनी इस गुप्त पीड़ा को गुप्त तरीके से बता रहे थे-
‘सिलसिलेवार दस्त लगे हैं, कुछ कीजिए, डाक्टर साहब।’
‘पहला दस्त कब आया था?’
‘रात बारह बजे के बाद।’
‘तब क्या कर रहे थे आप?’
‘उठ कर जाने की सोच रहा था।’
‘कहां से उठ कर, कहां जाने की सोच रहे थे?’
‘बिस्तर से उठ कर शौचालय जाने की।’
‘यानी आप सोने के मूड में थे?’ गुप्त रोग विशेषज्ञ ने अपने मतलब की बात पकड़ लेने के अंदाज में पूछा।
‘जी हां, सो ही गया था, मगर पेट में गुड़ुम-गुड़ुम की आवाजें आने लगीं और फिर बस…।’ रामभरोसे ने बीमारी के लक्षण को कम विस्तार से बताया।
‘मैं समझ गया। तुम्हारा केस बहुत ‘कॉम्प्लीकेटेड’ है।’
‘क्या है?’
‘काम्प्लीकेटिड यानी खतरनाक है, मगर घबराने की कोई बात नहीं। थोड़ा पहले आ जाते, तो बैटर था, मगर चलो, कोशिश करके देखते हैं। ऊपरवाला बड़ा रहम दिल है। सब ठीक-ठाक करेगा।’ डराने के बाद डाक्टर ने दिलासा भी दी।
‘दस्तों में यह ऊपरवाला कहां से आ गया?’ रामभरोसे लाल ने घबराते हुए डाक्टर से पूछा।
‘वही दस्त देता है, वही दवा देगा। हम तो बस, ज़रिया हैं।’ डाक्टर ने पिचकारीनुमा सीरींज को एक खास अंदाज में देखते हुए कहा।
‘ठीक है, मैं अभी घर होकर फौरन वापस आता हूं।’
‘क्यों? क्या हो गया?’
‘कुछ नहीं, अपनी बीवी को बता आऊं कि मेरे बीमे के कागज कहां रखे हैं।’ रामभरोसे डाक्टर से यह कह कर वापस न आने के लिए अपने घर की ओर निकल लिए।