रश्मि वैभव गर्ग
बाबा आप आइसक्रीम खा लो… पलाश ने बड़े प्यार से दादाजी से कहा।
नहीं! बेटा मेरी शुगर बढ़ जाएगी, रहने दे; बाबा ने मना किया।
बाबा बस जरा सी… एक हफ़्ते के लिए ही तो मैं आया हूँ… आप तो कह रहे थे हम खूब कुल्फी खाएंगे… और आप तो खा ही नहीं रहे, पलाश ने फिर से बाबा से प्यार से कहा।
हाँ! बेटा तुम खाओ… मुझे अच्छा लगेगा। मैं तो बस चख लेता हूँ। बाबा ने थोड़ी आइसक्रीम खाते हुए कहा।
बाबा आपने ये धागा पैर में कैसे बांध रखा है, बताओ न प्लीज, पलाश ने उत्सुकता से पूछा।
बेटा ये कच्चे अभिमंत्रित धागे बड़े पक्के होते हैं, जीने की राह देते हैं। ये मेरी लंबी आयु के लिए हैं। मैं जीने की कामना करता हूँ। जिस उम्र में लोग परमात्मा में आश्रय ढूंढते हैं, उस उम्र में जीने की गुहार लगा रहा हूँ। मैं जीना चाहता हूँ। जब तक मेरी नई फसल न लहलहाने लगे…हाँ! मैं तुम दोनों को खड़ा करना चाहता हूँ। तुम्हारे पापा के न रहने के बाद हुए रिक्त स्थान को भरना चाहता हूँ। जिस दिन तेरी कमाई की आइसक्रीम खाऊंगा, जी भर कर खाऊंगा..दोनों दादा-पोते गले लग कर अश्रुमिश्रित हँसी हँसने लगे।
(कोटा निवासी रश्मि वैभव गर्ग कहानीकार हैं)