नई दिल्ली। चर्चित पत्रकार एवं कथाकार मुकेश भारद्वाज की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘मनमोदी’ ने पाठकों का ध्यान खींचा है। यह वर्तमान प्रधानमंत्री पर लिखी महज एक किताब भर नहीं है बल्कि दस साल की जन आकांक्षाओं और नाउम्मीदियों का दस्तावेज भी है। कोई दो राय नहीं कि नब्बे के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की नव उदारवादी आर्थिक नीतियों ने जहां भारत को दुनिया में एक बड़ा बाजार बनाया, वहीं इसी चकाचौंध में भ्रष्टाचार का अंधेरा भी गहराया। इसी के साथ महंगाई सुरसा की तरह बढ़ती चली गई। उस दौर में उद्योग-धंधे पूरी गति से अवश्य बढ़े, मगर युवाओं में बेरोजगारी उत्तरोत्तर बढ़ती चली गई। यह देश के लिए यह एक बुरे सपने की तरह था।

‘शाइनिंग इंडिया’ का गुब्बारा फूटने के बाद यूपीए के शासन में बेशक काम हुए, मगर समस्याएं गहराती रहीं। यूपीए के दूसरे कार्यकाल के अंतिम दिनों में ये नरेंद्र मोदी ही थे जो ‘अच्छे दिन’ के सपने लेकर आए। हर कदम जद्दोजहद कर रहे नागरिकों के मन में एक उम्मीद जगी। अच्छे दिन के नारे रातों-रात लोगों के जेहन में छा गए। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। केंद्र में आने के बाद कुछ ही महीनों में उन्होंने सत्ता पर मजबूत पकड़ बना ली। लोकतंत्र के बरक्स उनका मोदी मंत्र प्रभावी हो गया। राजनीति के सभी पुराने सिद्धांत ध्वस्त हो गए। एक के बाद एक अहम फैसले से प्रधानमंत्री भारतीय राजनीति में नए अध्याय लिखते रहे। उनका चेहरा ही पार्टी की जीत की गारंटी बन गया।

मुकेश भारद्वाज ने अपनी पुस्तक में भारतीय राजनीति पर नरेंद्र मोदी के फैसलों से देश और समाज के हर तबके पर पड़े प्रभावों का विश्लेषण किया है। यह बेहद दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री के एक साल के कार्यकाल के बाद अगले नौ साल तक लगातार उनके कामकाज को इस लेखक ने बारीकी से परखा। एक सजग पत्रकार के रूप में श्री भारद्वाज ने जिस बेबाकी से लिखना शुरू किया, वह इस दौर के हिंदी पत्रकारों में कम दिखा। जिस दौर में प्रधानमंत्री रेडियो पर ‘मन की बात’ कहते हुए दूर-दराज के इलाकों से लेकर खेत-खलिहानों तक नागरिकों से संवाद कर रहे थे, ठीक इसी के समानांतर मुकेश भारद्वाज नरेंद्र मोदी की योजनाओं-निर्णयों की दो टूक समीक्षा कर रहे थे।

नरेंद्र मोदी अपने कार्यों से हिंदुस्तान के सबसे सक्रिय और गतिशील प्रधानमंत्री हैं। पुस्तक के लेखक का भी मानना है कि उनके कदम को नापना या उनके किसी निर्णय को पहले से भांपना नामुमकिन है। उनका यही खास अंदाज है। देश और विदेश में उनकी लोकप्रियता जगजाहिर है। उन्होंने कई सपने दिखाए तो कई पूरे भी किए। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा कोई एक साल में नहीं बना। दस साल के उनके राजनीतिक सफर में उनके खाते में कुछ नाउम्मीदियां हैं तो कुछ बड़ी उपलब्धियां भी।

मुकेश भारद्वाज ने अपने नब्बे से ज्यादा आलेखों में मणिपुर से लेकर महंगाई और राम राष्ट्र से लेकर भगवा तक की चर्चा की है। उनकी पुस्तक ‘मनमोदी’ सिर्फ प्रधानमंत्री पर केंद्रित नहीं है। उन्होंने बीते दस साल के दौरान भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली हर घटना का दस्तावेजीकरण किया है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास को जब खंगाला जाएगा तो पाठकों को इसमें ऐसे कई अध्याय मिलेंगे जिसे लोग शायद भूल जाएं, मगर कालखंड में यह दर्ज रहेगा।

कुल जमा ये कि ‘मनमोदी’ नए दौर की राजनीति का आईना है। कुल 479 पृष्ठों में समाहित यह पुस्तक राजनीतिक शास्त्र के विद्यार्थियों और युवा विश्लेषकों के लिए उपयोगी है। प्रकाशक इंडिया नेटबुक्स ने पुस्तक का आवरण आकर्षक बनाया है। शीर्षक भी ध्यान खींचता है।

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