नई दिल्ली। जासूस तो अपना काम करते ही हैं। मगर कुछ पशु-पक्षियों के माध्यम से भी जासूसी कराई जाती रही है। इनमें कबूतरों का खूब प्रयोग हुआ है। इसका एक इतिहास रहा है। प्राचीन काल से लेकर मुगलों के काल तक आप देख सकते हैं। उसके बाद भी जासूसी के लिए कबूतर प्रयोग में लाए जाते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय जासूसी संग्रहालय की रिपोर्ट है कि पहले विश्वयुद्ध के समय कबूतरों में छोटे कैमरे बांध कर दुश्मन के इलाके में भेजा जाता था। इसके माध्यम से उस क्षेत्र विशेष की तस्वीरें मिल जाती थी।

कबूतरों का लंबे समय तक प्रयोग जासूसी के लिए किया जाता रहा है। इसकी एक वजह यह भी थी कि इन पर जल्दी किसी को संदेह नहीं नहीं होता था। ये किसी भी मौसम में दुश्मन के इलाके में चले जाते थे। ये संदेश लेकर भी जाते थे। और फिर आसानी से लौट भी जाते थे। कहा जाता है कि उसे अपने कामों में 95 फीसद सफलता मिलती थी। कबूतरों के अलावा बाद कुछ जानवरों को भी जासूसी में इस्तेमाल किया गया। इस बात का जिक्र मिलता है कि साठ के दशक में अमेरिका की नौसेना ने पानी के नीचे खदानों का पता लगाने के लिए डॉल्फिन को प्रशिक्षित किया।

मगर जो भी हो जासूसी कार्यो में कबूतर अकेला पक्षी है जो अग्रणी है। अभी कुछ समय पहले चीन के लिए जासूसी कर रहे कबूतर को मुंबई पुलिस ने पकड़ा था। उसे आठ महीने बंद रखा गया। बाद में उसे छोड़ दिया गया। इस कबूतर को 2023 में मई महीने में मुंबई बंदरगाह पर पकड़ा गया था। उसके पैरों में दो अंगूठियां बंधी थीं। उन पर चीनी भाषा में कुछ लिखा था। जासूसी के संदेह में  पकड़े गए इस कबूतर को जानवरों और पक्षियों के एक अस्पताल में रखा गया।

कुछ समय बाद मुंबई में पकड़े गए इस कबूतर के बारे में एक दिलचस्प जानकारी मिली। पता चला कि यह कबूतर ताइवान में रेसिंग में हिस्सा लेता था। ऐसे ही कार्यक्रम के समय यह उड़ कर भारत चला आया। बता दें कि इससे पहले भी ओड़ीशा में दो कबूतरों को पकड़ा गया। इनमें से एक कबूतर के पैरों में टैग बंधा था। दूसरे कबूतर पर कैमरे जैसे उपकरण बंधे थे।

युद्ध के दौरान कबूतरों का प्रयोग आम बात है। पहले और दूसरे युद्ध के बाद तमाम युद्धों और शांति काल के दौरान भी कबूतरों से जासूसी कराई जाती रही है। पहले विश्वयुद्ध के दौरान चेर अमी नाम का एक कबूतर चर्चा में आया था। उसका अंतिम कार्य 1918 में 14 अक्तूबर को तब पूरा हुआ, जब उसने जर्मनों के विरूद्ध युद्ध में घिरे फ्रांस के 194 सैनिकों को बचाने में मदद की। इस क्रम में इसको गोली भी लग गई।  फिर भी वह एक संदेश पहुंचाने में कामयाब रहा।

घायल हुए इस कबूतर को बचाया नहीं जा सका। मगर फ्रांसीसी सैनिकों की जानें बच गईं। चेर अमी को बाद में फ्रांस का बड़ा सम्मान ‘फ्रेंच क्राइक्स डी गुएरे विद पाम’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान फ्रांस में किसी बहादुर नायक को दिया जाता है।             

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