जासूस डेस्क
नई दिल्ली। इस बार लोकसभा चुनावों के बीच जहां जासूसों की व्यस्तता बढ़ गई, वहीं कई डिडेक्टिव एजंसियां भी सक्रिय रहीं। किराये के जासूसों की भी खूब चांदी रही। साल 2024 के आम चुनाव में ऐसे कई नेता टिकट चाहते थे, मगर इससे पहले वे अपने प्रतिद्वंद्वियों की जासूसी कराना चाहते थे। अमूमन हर चुनाव में यह गुपचुप होता रहा है। यों कार्यकर्ताओं के माध्यम से भी जासूसी होती रही है। कौन नेता और कौन कार्यकर्ता दल बदलने वाला है, किसको टिकट मिलेगा, किसका तय हो गया है, उसका अतीत क्या है। उन्होंने कौन से घोटाले किए, इन सब के बारे में पता लगाने में राजनीतिक लोग लग जाते हैं।
चुनावों में जासूसी अब कोई नई बात नहीं रही। पहले यह राजनीतिक रूप से होती थी। मगर बाद में यह काम व्यवस्थित तरीके से होने लगा। सत्ता पक्ष तो अपने संसाधनों से विरोधियों पर नजर रखता ही रहा है। स्थापित प्राइवेट एजंसियां यह काम अतिरिक्त रूप से करने लगी हैं। पिछले दिनों इस आशय की खबरें आईं। इसमें कहा गया कि अब नेता अपने सहयोगियों पर भी नजर रखना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कि कहीं वो उनके विरोधियों से अचानक हाथ न मिला ले।
चुनावों के दौरान यह भी देखने में आ रहा है कि जिनको टिकट मिल गया उनको हराने के लिए कैसे नुकसान पहुंचाया जाए। बेटिकट रह गए नेता और कार्यकर्ता कितने बेचैन हो उठते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे प्राइवेट डिटेक्टिव एजंसियों की शरण में चले जाते हैं। इस बात को प्राइवेट एजंसियां बखूबी समझती हैं। क्योंकि कुछ निराश नेता उन बातों का पता लगाने की जुगत में होते हैं जिससे उनके साथी नेता चुनाव हार जाएं।
यही कारण है कि चुनावों से पहले जासूसी एजंसियों के दफ्तर में हलचल बढ़ जाती है। खुद टिकट पाने और दूसरों का टिकट कटवाने के लिए राजनीतिक दलों के नेता और वरिष्ठ कार्यकर्ता क्या-क्या नहीं करते। इसके लिए तमाम पुराने रिकार्ड खंगाले जाते हैं। कोई पुराना घोटाला हो या कोई अवैध संबंध का मामला हो, उन सबका पता लगाया जाता है।
बता दें कि जासूसी एजंसियां अपने ग्राहकों के बारे में कोई भी जानकारी साझा नहीं करतीं। दिल्ली सहित कई राज्यों की राजधानियों में प्राइवेट जासूस इस बार चुनाव से पहले ही अपना काम शुरू कर चुके थे। वे कई नेताओं के असाइनमेंट पर काम करने लगे थे। वे इसके बारे में इसलिए किसी को भी नहीं बताते तो इसलिए कि यह भरोसे की बात होती है और इसकी मुंहमांगी कीमत जासूसों और डिटेक्टिव एजंसियों को मिलती है। लेकिन यह तय है कि चुनाव के पीछे जासूसों के भी कुछ कारनामे होते हैं।