पुस्तक समीक्षा

साहित्य डेस्क
नई दिल्ली। कोई सात साल पहले आलोक यादव का ग़ज़ल संग्रह ‘उसी के नाम’ आया था। तब कौन जानता था कि वे इतने अल्प समय में वे शायरी में जाने-माने नाम हो जाएंगे। फिर साल 2022 में उनका  गज़ल संग्रह  ‘कलम जिन्दा रहेगा’ ज्ञानपीठ से प्रकाश्ति हुआ। इसके बाद तो उनकी एक खास पहचान बन गई। उनकी ग़ज़लों में दर्द तो था ही, भावों का इंद्रधनुष भी था। इसके बाद तो उनकी प्रतिष्ठा जो कायम हुई वह अब तक अक्षुण्ण है।

आलोक यादव की ग़ज़ल पढ़ते हुए आंखें नम हो जाती हैं। अब उनका नया ग़ज़ल संग्रह ‘लफ्ज चारागरी भी करते हैं’ आया है। जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया है। आलोक की गज़लें जीवन का कैनवास है। इस पर कई रंग हैं भावों के। उसमें एक दार्शनिक भाव है –
बर्फ गिरने लगी है पहाड़ों पर/
जिस्म को अपने ढक रही है हवा/
बिजलियां रास्ता दिखाती हैं/
और दर-दर भटक रही है हवा।

आलोक यादव की स्मृतियों में अनगिनत भावों की महफिल है। वे भावुक हैं। उनकी भावनाएं झरने की तरह उमड़ती हैं। वे भाव प्रधान शायर हैं। उनका समाज और जन के प्रति गहरा सरोकार है। वे बेफिक्र होकर महफिलें सजाते हैं-
जरा तपती सड़क पर घूम आऊं
तेरी यादों की फिर महफिल सजाऊं
बदन के घाव तो दुनिया ने देखे
जो दिल के जख्म हैं किसको दिखाऊं
चलो इक बार फिर महफिल सजाऊं?    

आलोक यादव उम्मीदों के शायर हैं। उनके लेखन की यही सार्थकता है कि वे दुख-संघर्ष और तमाम चुनौतियों के बीच सदैव सकारात्मक रहते हैं। उनकी ग़ज़लों की यही शक्ति है। तमाम चुनौतियों के बीच जीवन की अधूरी कहानी को पूरा करने और एक नई दुनिया बसाने की भी चाह हम देखते हैं- गए दिन अब भूलना चाहता हूं/नई दुनिया बसाना चाहता हूं/कहानी जो अधूरी रह गई थी/ उसे आगे बढ़ाना चाहता हूं/मैं अपनी लाश कांधे पर उठा कर/ ठिकाने लगाना चाहता हूं।

आलोक सोई संवेदनाओं को जगाने में सिद्धहस्त हैं। पिछले पांच सालों से पाठक आलोक यादव की ग़ज़लें पढ़ते रहे हैं। शायर अपनी आंखों की नमी जाने कितने दिल तक ले आते रहे हैं। शायर की लाचारी महसूस होती है तो वह उसके शब्दों में छलक पड़ता है-
हम शायर हैं दिल बहलाने आते हैं
सोया हुआ अहसास जगाने आते हैं
दुख के मौसम अपनी झोली में लेकर
मेरी चौखट तक वीराने जाते हैं
बस्ती के वीरान खंडहर को हैरत है
सन्नाटे भी शोर मचाने आते हैं।

किसी ने सही कहा है कि शब्द अगर जले जले पर नमक छिड़कते हैं तो कभी मरहम भी बन जाते हैं। आलोक यादव की ग़ज़लें ऐसी ही हैं। निश्चित रूप से उनके शब्द चारागरी (उपचार) करते हैं। उनके लफ्जों की चारागरी काबिल-ए-तारीफ है-
लफ्Þज़ चारागरी भी करते हैं
दर्द की पैरवी करते हैं
जब थकन पांव से लिपटती है
फासले भी रहबरी करते हैं

आलोक यादव की ग़ज़लों में रवानी है। वे बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते हैं। इससे शायर सहजता से आपके दिलों में उतर जाता है। सर्वभाषा ट्र्स्ट ने गज़ल संग्रह ‘लफ्ज़ चारागरी भी करते हैं’ को प्रकाशित किया है। इस संग्रह का आवरण आकर्षक है। कुल 104 पेज के इस संग्रह में कई ग़ज़लों को पढ़ते हुए आप ठिठक जाएंगे। निश्चित सहेज कर रखने योग्य ग़ज़ल संग्रह।  

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