-प्रतिभा आहूजा नागपाल
लिहाज के लिफाफे में
रखी मेरी अर्जियां
आज सील गई हैं
इन पर लिखी मेरी अर्जी की
स्याही कहीं-कहीं बिखर गई हैं।
कई जतनों से इन्हें संजोया था
कागज के टुकड़ों पर,
दिल का हाल बयां किया था।
दिल की तरह यह भी लिफाफों
में कैद हो गई है।
दिल सीने में धड़कता रहा
और ये बंद लिफाफों में
सुबकती रहीं।
बाहर आने की बेकरारी थी इन्हें
दिल का हाल जगजाहिर हो जाएगा
इसी लिहाज के मारे
बंद लिफाफों जीती रहीं,
मेरी ये अर्जियां निकम्मी हैं
लिफाफों की कैद को
तोड़ ही नहीं सकी…।
(प्रतिभा आहूजा नागपाल आकाशवाणी दिल्ली से जुड़ी हैं।)