पल्लवी गर्ग

वो मिलेनियम ईयर था। सन दो हजार।

बेहद पीड़ादायक गर्भाावस्था के पश्चात, अपनी प्यारी सी मुस्कान वाली डॉक्टर का हाथ बालों पर महसूस कर रही थी। जगह थी आॅपरेशन थिएटर। वक़्त था सुबह का।

मेरी बिगड़ती हालत के कारण आॅपरेशन करने का निर्णय लिया गया। शाम को मिली जब डॉक्टर से तो वे बोलीं, “ऐसी हालत में बच्चे के लिए खतरा हो सकता है। कल सुबह आपरेशन कर देते हैं।”

मैं अपने देवर, नितिन के साथ गई थी डॉक्टर से मिलने। बाहर आई तो उसने पूछा , “क्या कह रही हैं डॉक्टर?”

मेरा दिमाग उसके सवाल पर नहीं, सामने दिख रहे ब्यूटी पार्लर पर था। मैंने उससे कहा, “दस मिनट में आती हूँ फिर इत्मीनान से बताऊँगी।” खटाखट पार्लर में जा कर आई-ब्रो बनवाई।
वो गाड़ी में हैरान परेशान बैठा मेरा इंतजार कर रहा था।

मैंने आ कर कहा, “यार, डॉक्टर कल सुबह आॅपरेशन करने को कह रही हैं और फिर पूजा पाठ के पहले घर से निकलने नहीं मिलेगा तो आई-ब्रो बनवाने चली गई।”

दो मिनट मुझे हैरानी से देखा, फिर बोला, “टेंशन नहीं हो रहा है आपको। घर में मत बता दीजिएगा की पार्लर गई थीं। पहले ही सब परेशान होंगे आपरेशन का सुन कर, पार्लर बताते हुए सब आग- बबूला हो जाएंगे।”

खैर, हम पार्टनर्स इन क्राइम ने सोच लिया तो सोच लिया। इतना प्यारा भाई मेरा….

घर पर सब आॅपरेशन का सुन कर दहशत में थे। शोभित इत्मीनान से बोले, “सज आईं!” और हम तीनों हंस दिए।

आॅपरेशन के बाद जो हुआ वह ऐसा था कि क्या ही कहूं। अम्मा उसी साल वाईस-प्रिंसिपल पद से रिटायर हुईं थीं। म्मा के स्कूल में जैसे ही पता चला, पूरा स्कूल उमड़ आया अस्पताल। टीचर्स वहीं नाचने गाने लगीं।

शाश्वत बहुत कमजोर था। मेरी हालत का खामियाजा उस बच्चे ने भुगता! मैं दर्द और इंजेक्शन के असर में। शाश्वत कमजोरी के कारण सोया हुआ।

हुजूम नाचता गाता। बड़ी मुश्किल से सबको बाहर किया गया।

एक दिन कैसे तैसे दर्द और तकलीफ झेलते बीता। अगले दिन शाम को मेरे दिमाग में आया कि शाश्वत ने मेरे सामने एक बार भी यूरीन पास नहीं की।

मेरे यह कहते ही फिर हड़कंप मचा। तुरंत चाइल्ड स्पेशलिस्ट आये। उसकी जांच हुई। उन्होंने नर्स, अम्मा, मम्मी, शो•िात सबकी खटिया खड़ी की।

बोले घर से पानी मंगवाए, दो घंटे थोड़ा थोड़ा पानी पिलाइए। अगर यूरीन हो गई तो ठीक नहीं तो इसको आई.सी.यू. में रखना होगा, किडनी पर असर आ सकता है।

एक दिन से चल रहा उत्सव घबराहट और दहशत में बदल गया। कोई हनुमान चालीसा पढ़े, कोई पानी पिलाये। मेरे आँसू न रुकें। दर्द के कारण रोया भी न जाये!

दो घंटे दो सदी से लंबे! पर उसने पूरी लड़ाई लड़ी और दो घंटे में उसको दो तीन बार यूरीन हुई।

शाश्वत बचपन से समझदार और अड़ियल रहा। प्यारी सी मुस्कान और शांत स्वभाव का बच्चा! बहुत जल्दी बोलना सीख गया। बाबा, दादी, पापा, ताता (चाचा), मामा, नानी को नन्नन, नाना सब बोलता था।
बस मुझे कुछ नहीं बुलाता था।

न मम्मा, न अम्मा न मम्मी। जैसे ही कोई मेरी तरफ दिखा कर पूछता ये कौन हैं… मुस्कुरा कर शर्मा जाता।

अब तक वो एक वर्ष से अधिक का हो गया था। चलता था, गिलास से दूध पीता, पूरा खाना खाता, कोई पूछता, मम्मा कहाँ हैं तो इशारा करता मेरी ओर, पर मुझे कुछ बुलाता नहीं था।
कहा न अड़ियल था!

उन दिनों एक सीरियल आता था ‘छोटी माँ’ उसे बड़े ध्यान से देखता। पता नहीं उसको उस सीरियल के टाइम का कैसे अंदाजा हो गया था। हाथ पकड़ कर टीवी तक ले जाता। टीवी चलवाता और तब तक पैर पटककर रोता जब तक ‘छोटी माँ’ न लगा देते।
हम सबको उसकी इस हरकत पर बड़ा प्यार आता।

एक दिन ‘छोटी माँ’ को देखते देखते वो मेरी तरफ घूमा और बोला “माँ”!

शायद उसको अम्मा, मम्मा, मम्मी, आई कुछ नहीं बोलना था मुझे। वो अपना शब्द ढूँढ़ रहा था, जो उस सीरियल से मिला उसे। आश्चर्य तो यह था कि हमने कभी उसके सामने माँ शब्द बोला ही नहीं था!
न जाने उसे कैसे पता था माँ!

फिर शुरू हुआ सारा दिन माँ का रटन, जो अब भी जारी है। घर में सब उसको बेटा फिल्म का अनिल कपूर कहते। उसके लिए माँ का कहा पत्थर की लकीर सा!

अपने स्वास्थ्य से हारती जीतती चल रही थी मैं। अचानक स्वास्थ ने करवट ली। एक ऐसा दौर आया, जब सब अनिश्चित बस बेतहाशा दौड़ डॉक्टरों तक! इलाज के लिए मुम्बई तक।

सबके मुरझाए चेहरों के बीच एक चेहरा मुस्कुरा रहा था। शाश्वत का! अपने से दो साल छोटी बहन का हाथ थामे नौ बरस का बच्चा। उसकी बहन जब बोली, “भइया माँ आएंगी?”
तो बोला, “जल्दी ही। बाकी मैं हूँ न!”

गाड़ी में बैठते बैठते यह सुन सुन्न थी। वो वाकया फिर कभी…

हाँ, कुछ वक़्त के जद्दोजहद के पश्चात, शाश्वत का विश्वास जीत गया।

पर हमेशा यूँ नहीं होता है न! नियति का क्रूर वार झेलना पड़ता है।

अबोध उम्र में किसी भी कारण से माँ के साये का दूर होना, जीवन अधूरा कर देता है। जीवन का सबसे कोमल व्यक्ति, सबसे कोमल स्वर, सबसे शीतल एहसास खो जाता है।
सब रिश्ते सामने होते हैं पर एक अक्षर ‘म’ जो सारे दर्द हर लेता उसके, वही नहीं होता।

किसी भी उम्र में माँ की कमी असहनीय है। फिर अगर कोई बच्चा, सबको अपनी माँ से लिपटते देखे, उनसे बहस करते देखे, उनकी गोद में सर रख कर सोते देखे और अपनी माँ को बस आँखे बंद कर के महसूस कर पाए तो उस बच्चे से उसका बचपना स्वत: ही छिन जाता है।
बिन माँ, बच्चा पलक झपकते ही बड़ा और एकाकी हो जाता है।

सच ही तो है, जीवन में गम और खुशियाँ बिन बुलाए ही आते हैं। और जब हम उनमें रमने लगते हैं तब अचानक सब बदल जाता है…
…और बदल जाता है जीवन!

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