जासूस डेस्क
नई दिल्ली। जासूसी शब्द ध्यान में आते ही कई तस्वीरें आंखों के आगे आ जाती हैं। मगर अब तो पारंपरिक जासूसों की तस्वीरें बदल गई हैं। जासूस आधुनिक हो गए। आसमान में उपग्रहों से जासूसी होने लगी। कंप्यूटर और मोबाइल में सेंधमारी कर आप पर नजर रखी जाने लगी। आप कहां जाते हैं और क्या बात करते हैं, सब पर निगाहें हैं। जासूसों के निशानों पर प्रतिद्वंद्वी देश की तमाम गोपनीय जानकारियां हैं। लेकिन अब दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए खतरा बन चुके मच्छरों और उनके लार्वा की जासूसी होगी। वह भी हाईटेक तरीके से। ये जहां भी होंगे इनका पता लगा लिया जाएगा।
पिछले दिनों एक सकारात्मक खबर आई जिसमें बताया गया कि जासूसी उपग्रह तकनीक से पानी में लार्वा का पता लगाने की कोशिश हो रही है। यह पहल एक भारतीय नव उद्यमी ने अपने स्टार्टअप के माध्यम से की है। खबर के मुताबिक कोलकाता के शिशिर रडार नाम की कंपनी ने पानी वाली जगहों पर मच्छरों के लार्वा का पता लगाने के लिए एक खास तकनीक ईजाद की है। यह वस्तुत: उच्च स्तर के हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग तकनीक पर आधारित है। इसमें ड्रोन पर खास प्रकार के कैमरे लगाए जाते हैं।
हाईपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग से मच्छरों के लार्वा का पता लगाने में सफलता मिली। शुरुआती नतीजे उत्साहवर्धक हैं। कंपनी ने बताया है कि उन्होंने साफ पानी और मच्छर के लार्वा वाले पानी को मिट्टी के घड़े और प्लास्टिक के कंटेनर में रखा। फिर इसका हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग ने 15 मीटर की ऊंचाई से उनकी तस्वीर ली। यह उंचाई एक पांच मंजिला इमारत जितनी थी। शिशिर रडार के मुताबिक इस शोध से पानी में लार्वा का पता लगाने में सफलता मिलेगी। फिर उन पर व्यवस्थित रूप से कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकेगा।
शिशिर रडार के कौन हैं अगुआ
मच्छरों की इस अनोखी जासूसी का आइडिया किसका है। यह जानना दिलचस्प है। इसरो के अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के पूर्व प्रमुख निदेशक तपन मिश्र को भारत में जासूसी उपग्रहों का पितामह माना जाता है। उन्होंने भारत में कीटनाशकों को मनमाने तरीके से छिड़काव पर गौर किया और लार्वा का सही जगह से पता लगाने के लिए कंपनी स्थापना की। उनका मानना था कि बेतहाशा छिड़काव से जल स्रोत जहरीला होता है। उनमें रहने वाले जीव भी उससे प्रभावित होते हैं। इससे बचने के लिए उन्होंने शोध किया। अब उनका मानना है कि उनके बनाए खास तरीके से लार्वा के स्तर पर ही मच्छरों को खत्म कर दिया जाएगा। इससे पर्यावरण को भी नुकसान होगा।
तपन मित्र का मानना है कि खास तकनीक से लार्वा को समाप्त करने से डेंगू और मलेरिया नहीं होगा। इससे हजारों-लाखों लोगों को मौत से बचाया जा सकेगा। यह एक तथ्य है कि दुनिया में 85 देशों में लोग मच्छरों से होने वाले रोग से परेशान हैं। इससे छह लाख लोगों की मौत हो जाती है। बीमारियों की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है।