-हेमलता म्हस्के

नई दिल्ली। मानव समाज में पक्षियों का हमेशा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वे परागण की भी एक बड़ी वजह हैं। इसके साथ-साथ, मनोरंजन के विभिन्न स्रोतों के रूप में भी उनका उपयोग किया जाता है और वे हानिकारक फसल कीटों को नष्ट कर के, जैव नियंत्रण में भी हमारी सहायता करते हैं। ऐसे उपयोगी पक्षियों के सामने अब संकट आ गया है। कल तक हम पक्षियों के जितने करीब रहते थे उतने आज नहीं रह गए। हमने घर-द्वार और बंगलों की ऐसी बनावट विकसित कर ली जिसमें हमने केवल अपनी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखा, लेकिन सदियों से साथ रहते आए पशु पक्षियों का ख्याल नहीं रखा।

ऐसी हालत में पक्षियों, खासकर गौरैया के प्रेमी संजय कुमार की कहानी सराहनीय है और प्रेरक भी। प्रेरक इसलिए भी कि आज की दुनिया में लोग अपने व्यवसाय में व्यस्तता का बहाना बनाते हैं कि उनके पास वक्त नहीं है। संजय कुमार के ऊपर भी बहुत जिम्मेदारी है, लेकिन इसके बावजूद पक्षियों के लिए समय निकालते हैं। उनके लिए दाना-पानी का इंतजाम करते है और ऐसा करने के लिए औरों को भी प्रेरित करते हैं।

संजय कुमार पत्रकार और लेखक होने के अलावा केंद्र सरकार में अधिकारी भी हैं, लेकिन इन सबके होते हुए भी वे एक अनूठे पक्षी प्रेमी भी है। वे व्यस्ततम जीवन जीते हुए भी पक्षियों के लिए समय ऐसे निकालते हैं मानो वे उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण हिस्से हों। उनके बिना उनका जीवन ही अधूरा हो। मजे की बात यह है कि पक्षियों ने भी उनको ऐसे अपना लिया मानो वे सालों से उनके दोस्त हों।

भागलपुर में जन्मे संजय कुमार भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। पक्षी प्रेमी यों कहे गौरैया की जब चर्चा होती है तो इनका नाम जरूर सामने आता है। सालों से गौरैया संरक्षण मुहिम चला रहे हैं। पक्षियों ने इनके जीवन को अभूतपूर्व  विस्तार दिया है। वे अब पक्षियों की भाषा और उनके व्यवहार को भी समझने लगे हैं। एक कहावत है कि खग की भाषा खग ही जाने। लेकिन संजय कुमार बिना खग बने ही उनकी भाषा को भली-भांति समझने लगे हैं। संजय कुमार की चौदह किताबें छप चुकी हैं, लेकिन अकेले गौरैया संरक्षण पर ही अब तक इनकी तीन पुस्तकें-अभी मैं जिन्दा हूँ…गौरैया, ओ री गौरैया और आओ गौरैया प्रकाशित हो चुकी हैं। वे अच्छे फोटोग्राफर भी हैं। गौरैया की हजारों तस्वीरें भी ले चुके हैं। गौरैया और अन्य पक्षियों पर मीडिया में लिख कर संरक्षण का सन्देश भी देते रहते हैं। इसके लिए उन्हें बहुत सम्मान भी मिले है। संवेदनशील लोगों का भरपूर प्यार भी मिला है। पंद्रह साल पहले एक प्यासी गौरैया ने संजय कुमार की जिंदगी को ऐसा झकझोरा कि उसके बाद वे इनकी दुनिया में रमते चले गए।

दुनिया भर में घर-आंगन में चहकने-फुदकने वाली गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसद तक की कमी आई है। ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को रेड लिस्ट में डाला था। वहीं, आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसद की कमी आई है। यह कमी ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुई है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घट कर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। लेकिन, स्टेट आॅफ इंडियन बर्ड्स 2020, रेंज, ट्रेंड्स और कंजर्वेशन स्टेट्स की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 साल से गौरैया की संख्या भारत में स्थिर बनी हुई है। हालांकि देश के छह महानगरों बंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में इनकी संख्या में कमी देखी गई है।

संजय कुमार के मुताबिक गौरैया की संख्या में कमी के पीछे के कारणों में आहार की कमी, बढ़ता आवासीय संकट, कीटनाशक का व्यापक प्रयोग, जीवनशैली में बदलाव, प्रदूषण और मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को दोषी बताया जाता रहा हैं, जो  पूरी तरह से सत्य नहीं हैं । गौरैया अपने बच्चे को शुरूआत में कीड़ा खिलाती है यह कीड़ा उसे खेत-खलिहान-बाग-बगीचा और गाय के गोबर के पास से मिलता है। फसल और साग-सब्जी में बेतहाशा कीटनाशक के प्रयोग ने कीड़ों को मार डाला है। ऐसे में गौरैया अपने बच्चे को पालने के दौरान समुचित आहार यानी प्रोटीन नहीं दे पाती हैं और बच्चे  कमजोर हो जाते हैं। गौरैया के प्रजनन के लिए अनुकूल आवास में कमी भी इसकी संख्या में कमी का एक कारण माना जा रहा है।

आवासों का तेजी से कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने से तस्वीर बदल गई है। शहरों में इनके प्रजनन के लिए अनुकूल आवास नहीं के बराबर है। गौरैया संरक्षण में जुड़े लोग कृत्रिम घर बना कर गौरैया को प्रजनन के लिए आवास देने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें गौरैया अंडे देने के लिए आ भी रही है। कई गांवों में यह संकट ज्यादा नहीं है, फूस और मिट्टी के आवास अभी भी हैं। हाउस स्पैरो यानी घरेलू गौरैया इंसानों के घरों में या आसपास रहती है। अंडे देने के लिए घरों के अंदर जगह खोज लेती है लेकिन आधुनिक जीवन शैली के तहत घरों के पैक हो जाने से घर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाती है और फिर अंडे देने के लिए इसे भटकना पड़ता है। ऐसे में हर कोई पहल करे और अपने आसपास रहने वाली गौरैया का ख्याल रखे तो इसे बचाया जा सकता है साथ ही दूसरी चिड़ियों को भी। क्योंकि कौआ और मैना भी गायब हो रहे हैं।

संजय बताते हैं  कि वे लगातार लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं। उन्हें गौरैया की ओर से याद दिलाते हैं कि अभी मैं जिंदा हूँ …मुझे बचा लो। रोज दाना-पानी रखें और आवासीय संकट से उबरने के लिए पेड़ और बॉक्स लगाएं। इन बेजुबानों को बचाने के लिए जहां तक चुनौती का सवाल है तो इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि पहले मैं जब दाने को रेलिंग पर डाल देता था तो कबूतर आकर उसे पूरा चट कर जाता था और गौरैया ताकती रह जाती थी। बाद में मैंने कई दाना बॉक्स में दाना को रखने लगा, इससे यह हुआ कि सब खा लेते हैं। सबसे बड़ी चुनौती उस वक्त होती है जब गौरैया के बच्चे घोंसले से निकल कर खुले आसमान में आते हैं। छोटे-छोटे बच्चे जब दाना पानी के लिए आते हैं तब कौआ उन पर हमला करने की फिराक में रहता है। कई दफा मेरे सामने गौरैया के बच्चे को हो पकड़ कर उसे मारकर खा जाते हैं। लेकिन इस इकोसिस्टम में हम कुछ भी नहीं कर सकते। हां, कोशिश रहती है कि उस पर नजर बनाए रखने की।

संजय कुमार ने पक्षियों की आबादी बढ़ाने में खुद को झोंक दिया है। न सिर्फ पक्षियों को दाना-पानी देते हैं बल्कि किताबें/आलेख लिख कर भी देश और दुनिया में पक्षियों को बचाने का संदेश फैला रहे हैं। तो वहीं हमारी गौरैया और पर्यावरण योद्धा के साथ फोटो, घोंसला और गौरैया से जुड़ी छोटी-बड़ी बातों की प्रदर्शनी लगा कर स्कूल-कॉलेज और आयोजनों में गौरैया संरक्षण पर चर्चा कर लोगों को जागरूक करते हैं


प्यासी गौरैया ने बदल दिया जीवन, पक्षियों को बचाने की मुहिम चला रहे हैं संजय

फोटो : संजय कुमार द्वारा खींची गई तस्वीर

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