-संतोषी बघेल
दुनिया का समस्त प्रेम
सिमट जाएगा एक दिन उपालभ्य में
दुनिया के तमाम मुद्दे भी
किसी कविता की पंक्ति बना कर
बिसरा दिए जाएंगे।
तब तुम जुड़ जाना प्रकृति से,
छूकर देखना उन ठूंठों को,
जो अपने अस्तित्व की
अंतिम लड़ाई भी हार चुके हैं
करुणा से भीगा लेना अपनी आंखें,
अनाथ बच्चों और वृद्धाश्रम के
पीड़ितों के लिए,
मानवीय मूल्यों की हत्या पर
सच्चे दो आंसू ढुलका देना।
तब तुम प्रेम का आलाप छोड़ दोगे,
उबर जाओगे सतही भावुकता से
तुम्हें सचमुच प्रेम करना हो तो,
तुम चुनना प्रकृति को
और अपनी पशुता को ढाल लेना मनुष्यता में
निश्चय ही तुम प्रेम करना सीख जाओगे…।