जासूस डेस्क
नई दिल्ली। जासूसी कहानियां पढ़ी जाती रहीं हैं वहीं जासूसों को केंद्र में उपन्यास भी कम नहीं रचे गए। आज भी लिखे जा रहे हैं। मगर टीवी शृंखला में भी जासूस खूब नजर आए। इन दिनों ओटीटी मंच पर उनका जलवा कायम है। मगर 22 साल पहले विजय के नाम का एक जासूस हमारे बीच आया था। वह चालाक नहीं, बल्कि वंचित वर्ग की मदद करने वाला नायक था।

वर्तमान पीढ़ी बेशक जासूस विजय को भूल गई हो मगर दूरदर्शन के अंतिम प्रभावशाली दौर में यह जासूस भारतीय नागरिकों के बीच एड्स के प्रति जागरूकता लाने के लिए एक लंबी टीवी शृंखला में उतरा। इसके 195 एपिसोड प्रसारित हुए । पहली शृंखला 2002 में आई। और सितंबर 2006 तक डीडी नेशनल पर लगातार प्रसारित होती रही। इस जासूस केंद्रित कहानी पर आधारित शृंखला को छोटी कहानी में बांटा गया। इसकी हर छोटी शृंखला एक-एक महीने तक चलती थी। इसके मेजबान थे ओमपुरी। वे कथानक की चर्चा करते। समस्याओं के समाधान के लिए दर्शकों को पत्र लिखने के लिए कहते। पहली शृंखला में ही डाक से 30 हजार से अधिक प्रतिक्रिया मिलीं।

विजय एक बेहतरीन जासूस था। वह समाज के लिए कुछ कहना चाहता था। इस काम में गौरी नाम की युवती उसकी सहायक बन गई थी। बाद में विजय ने उससे शादी कर ली थी। इस टीवी शृंखला में विजय बार-बार मामला सुलझाता था। दूरदर्शन और नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाईजेशन के सहयोग से बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ट्रस्ट ने टीवी शृंखला जासूस विजय तैयार की। इसे आज भी याद किया जाता है। इस शृंखला में आदिल हुसैन, मिन्हा जमीर, फरहान खान, पूर्वा पराग, वैभव तलवार और नुपूर जोशी ने तो मुख्य भूमिकाएं तो निभाई ही, वहीं अभिनेता ओमपुरी विशेष भूमिका में रहे। कहानी लिखी थी अपराजिता शाहा और संजीव शर्मा ने।

दर्शक आज भी जासूस विजय को नहीं भूले होंगे। वह जासूसी-अपराध शृंखला का नायक था। हर शृंखला में एक चौंका देने वाली कहानी थी। विजय अपने प्रयास से अपराध के हर मामले सुलझा देता था। वह कहानियों का नायक जरूर है मगर है वह देसी जासूस। वह फुल एक्शन में दिखता है। अपराधियों का सामना करता है। वह लड़ता है और पकड़ कर उसे उसके अंजाम पर पहुंचा देता है। इसी में जीत नाम का एक जासूस है। जो उसका खास सहयोगी बनता है। इसी के साथ जासूस पार्वती भी टीम में शामिल होती है। इसी तरह दर्शक इस टीवी शृंखला में रहस्य रोमांच के साथ रोमांस को भी देखते हैं। सामाजिक अपराध को सुलझाने के लिए जासूस विजय मामले की तह में जाता है।

जासूस विजय को देख कर आज के दर्शक अंदाजा लगा सकते है कि इस शृंखला के लेखक और निर्माता कितने पुरजोर तरीके से भावी जासूसी शृंखलाओं की नींव रख रहे थे। मगर इस शृंखला का तो संदेश काफी बड़ा था जो अमूमन बाद के दौर में लुप्त हो गया और सिर्फ मनोरंजन भर रह गया। जासूस विजय एक ऐसा टीवी ड्रामा था जिसका लक्ष्य एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों के खिलाफ भोदभाव और कलंक को कम करना था। इसके माध्यम से अंधविश्वास, महिलाओं के खिलाफ अपराध, घरेलू हिंसा, बलात्कार, दहेज प्रथा, लैंगिंक असमानता ये तमाम मुद्दे उठाए गए।

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