-वंदना मौलश्री

चांद में मेरा अक्स हो,
सूरज को मुझसे रश्क हो।
नभ जब मुझे निहारे अपलक,
तो सर ऊंचा कर दे।
धरती मुझे चाहे इतना,
फूलों से घर भर दे।

बादल का घोड़ा,
दुनिया मुझे घुमा दे
पहाड़ों के शिखर पर,
आंचल में बादल भर लूं  
झूमते झरने के साथ,
नदियों की सैर कर लूं।
मैं जो गुनगुनाऊं तो,
वसंत दूत रीझ जाए
कदम मेरे थिरकें तो
कलाधर भी हुलसाए।

सागर की लहरें जुल्फें संवारें,
सीपों के मोती मुझ पर वारें
मुस्कान पर मेरी सावन भी रीझे।

दुख पर मेरे धरती पसीजे
है केवल यही एक सपना,
देखूं जिसे कर लूं अपना
मौलश्री के फूलों से
मैं धरती सजा दूं
हर दिल में खुशियों की ज्योति जला दूं।
बस इतना सा ख्वाब है…।

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