-संजय स्वतंत्र
मैं कहता हूं-
तुम अहिल्या नहीं हो
जो छली गई इंद्र से और
फिर गौतम ऋषि के श्राप से
बन गई थी शिला
और करती रही
सदियों तक राम का इंतजार।
क्रूरता और शोषण की
शिकार करोड़ों स्त्रियां
बन चुकी हैं अब
दासता की अखंड शिलाएं।
बरसों से उपेक्षित
इन स्त्रियों के जीवन में
कभी नहीं आए राम।
उनके साथी नहीं थे
कोई गौतम ऋषि
जिनके श्राप से
बुत बन गईं ये स्त्रियां,
न ही सत्यवान सा सच्चा
कोई जीवन मित्र था।
परस्त्रियों पर मोहित
पुरुषों से मिले दंश को
घूंट-घूंट पीती रहीं,
मरती रहीं बार-बार
चौका बासन करते हुए
बुत ही बनी रहीं वे ताउम्र।
कोई प्रेम कहानी नहीं थी
इन स्त्रियों के जीवन में।
प्रतीक्षारत उनके नयन
बुझ गए धीरे-धीरे
मिट्टी के दीये की तरह।
निर्झर बहते रहे आंसू
सूख गई भाव-भूमि भी,
पपराए होंठों से
गुम हो गई उसकी मुस्कान।
घरों-दफ्तरों से लेकर
निर्माण स्थलों पर
कार्यरत अथक स्त्रियों में
आज भी हैं कई अहिल्या
शापित और उपेक्षित।
साथ छोड़ गए जिनके साथी
गौतम ऋषि की ही तरह
मन के किसी छोर पर
और कह दिया-
हमें तुम्हारी जरूरत नहीं।
मैं फिर कहता हूं-
तुम अहिल्या नहीं हो,
मत करो राम की प्रतीक्षा।
कर चुके वे एक का उद्धार,
नहीं आएंगे वह बार-बार
दुनिया भर की स्त्रियों के लिए।
सुनो-
तुम्हें स्वयं बनना होगा राम
करना होगा स्पर्श अंतर्मन का।
तब नियति के श्राप से
खुद को कर लोगी मुक्त,
अपनी आंखों में फिर से
सजा लोगी सपनों के दीप,
रच सकती हो अधरों पर
कोई प्रेम कहानी अपने लिए।
तुम को नहीं बनना है राधा
क्योंकि हर युग में
छली गईं स्त्रियां।
मर्यादा के नाम पर
वन भेज दी गई सीता,
राधा को विरह देकर
एक दिन निकल गए कृष्ण भी।
द्रौपदी को भ्रम में
स्वीकार करने पड़े पांच पति।
दौर कोई भी रहा हो
प्रेम संबंध बनाने पर
अपवित्र कहलाईं स्त्रियां
और पुरुष बना रहा पवित्र।
सुनो-
तुम नहीं हो अहिल्या।
भावी संतति के लिए
नहीं चाहिए तुम्हें कोई साथी,
तुम्हारे मन की कोख में
पुण्य कर्मो के बीज हैं
जिनको सिंचित करना है तुम्हें
इस पृथ्वी को बचाने के लिए।
सत्कर्मों से प्राप्त साथी को
बनाना होगा तुम्हें सारथी,
जीवन की रणभूमि में
वह घमासान के लिए
करेगा तुम्हें तैयार।
तुम हो नए दौर की अहिल्या
नहीं करोगी किसी की प्रतीक्षा।
अपने उद्धार के लिए
चट्टान रूपी बाधाओं को तोड़
तुम आगे बढ़ोगी और
मुक्त करोगी उन स्त्रियों को
जो हिंसा और शोषण की शिकार हैं
धरती के हर कोने में।
सुनो-
तुम अहिल्या नहीं रही।
अब प्रकाशस्तंभ हो
उन सभी स्त्रियों के लिए,
तुम स्वयं दीप हो।
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तस्वीर : प्रतीकात्मक