-डॉ. परमजीत ओबराय
मन कर चिंतन –
जब भटके मन,
न है, न होगा कोई
कर ले चाहे कितने प्रयत्न।
बिना संघर्ष जीवन भर-
न पाया आश्वासन,
क्योंकि थे अनभिज्ञ-
रमा रहा जग में यह चंचल मन।
सबसे बड़ा पाप है,
पहुंचाना किसी को आघात,
न बना पाएंगे-
अंत में कोई भी तात।
परनिंदा में न चित लगा
कमा पुण्य स्तुति में,
न संभलेगा अभी तो-
रहेगा फंसा जीवन,
जीव भंवर में।
रख मानव से
मानवता का नाता,
चाहे हो कोई अपना-
रिश्ता नाता।
गर गुमान रहेगा मन में-
तोड़ न पाएंगे
बंधन हम अपने।
अपनों को सीख देने का है-
महत्त्व,
जीवन नैया से होगा पार-
मानव अनवरत।
प्रकृति से सीखें करना
सबसे मेल-भाव,
न करें घृणा-
रहे मन में सदैव,
सब हेतु सद्भाव।
लेना चाहते हैं यदि
उसका आशीर्वाद-
तो न करना होगा
किसी से कोई विवाद।