-वंदना मौलश्री

बोलो कौन सरोवर से
तुम पानी भर कर लाए,
ठुमक-ठुमक कर चलते हो
पानी छलकत जाए।
गोरे हो कहीं काले हो
सूरज को ढकने आते हो,
पंख छुपा कर आसमान में
कितनी दौड़ लगाते हो।

धक्का खाकर गिरि से जब तुम
औंधें मुंह गिर जाते हो,
दहाड़ मार कर तुम हो रोते
बिजली से पिटवाते हो,
धरती से जब लड़ कर
सूरज खूब आग लगाता है,
तब पानी उड़-उड़ कर
आसमान पर छाता है
पानी वाष्प रूप में बादल बन जाता है,
जाकर आसमान में
सूरज की तपिश छुपाता है

लेकर पानी की बूंदें फिर बादल उड़ता जाता है,
संग मिले जब ठंडी हवा का
बादल पानी बरसाता है।
हर एक बूंद कीमती है
जो बादल लेकर आता है,
धरती की प्यास बुझा कर
यह अमृत भर कर जाता है।

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