-रागिनी श्रीवास्तव
पति ने लगातार बड़बड़ाते हुए तीनों रोटियां खा ली थीं। हाथ धुलते वक्त भी जब नही रहा गया तो अपनी भड़ास निकाल ही ली। ‘आज पचास साल से बिना शिकायत किए तुम्हारी जली रोटियां खा रहा हूं… दिखता न हो तो चश्मे का नंबर बदल लो।’
पत्नी ने धीरे से थाली हटा ली। इतने सालों से एक ही बात सुन-सुनकर उसके कानों ने सुनना, जुबान ने कुछ कहना लगभग बंद कर दिया था।
रात काफी हो चुकी थी पति को नींद नही आ रही थी। आज शाम सैर को जाते हुए बायां पैर थोड़ा मुड़ गया था। उस वक्त तो पता नहीं चला पर अब दर्द से परेशान हो करवट बदल रहा था।
अचानक मुंह से आवाज निकलने ही वाली थी कि जाने कब बगल में सोई पत्नी मूव लेकर आ गई।
कमरे की हल्की रोशनी में भी पत्नी के हाथ पर पड़े छालों के निशान साफ दिख रहे थे। अचानक पति को लगा चश्मा बदलने की जरूरत उसे भी है।
(मुंबई निवासी रागिनी श्रीवास्तव कथाकार हैं।)