साहित्य डेस्क
नई दिल्ली। साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने पिछले दिनों कहा कि साहित्य और पत्रकारिता को सबसे अधिक नुकसान राजनीति ने पहुंचाया है। मगर उन्होंने जोर देकर कहा कि साम्राज्य खत्म हो जाते हैं, लेकिन साहित्य जीवित रहता है। यह बात उन्होंने मशहूर शायर जोश मलीहाबादी के आखिरी काव्य संग्रह ‘महामिल-ओ-जरस’ का लोकार्पण करते हुए कही। दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। इस अवसर पर केंद्रीय पंचायती राज राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल के साथ कई लेखक, विद्वान और प्रोफेसर उपस्थित थे।
अशोक वाजपेयी ने इस मौके पर मलिहाबादी को अपने दौर का सबसे बड़ा कवि बताते हुए उनकी रचनाओं के महत्त्व पर रोशनी डाली। उन्होंने जोश की रचनात्मक पृष्ठभूमि में साहित्य की शक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि साम्राज्य मिट डाते हैं, मगर साहित्य जीवित रहता है। समारोह में उपस्थित विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर अब्दुल हक ने जोश को एक नए संदर्भ में और उनकी कविता को नए दृष्टिकोण से देखने पर जोर दिया। वहीं प्रोफेसर अख्तर-उल-वासे ने जोश मलीहाबादी की रचनाओं में विविधता का जिक्र किया और कहा कि रचनाओं में विविधता का जिक्र किया और कहा कि वे शायर-ए-इंकलाब थे और शायर-ए-शबाब भी थे।
बता दें कि जोश मलीहाबादी की पुस्तक मलीहाबादी की पुस्तक महफ़िल-ओ-जरस और फिक्र-ओ-फिक्र का प्रकाशन उनके निधन के 41 साल बाद हुआ है। इसे लेकर शायर और लेखक आदिल जैदी ने संग्रहित किया है। समारोह में इनके अलावा डॉ. हिलाल नकवी द्वारा संपादित जोश के समग्र कल्लियात-ए-जोश और जोश की आत्मकथा ‘यादों की बारात’ का भी लोकार्पण किया गया।