साहित्य डेस्क
नई दिल्ली। लेखक-प्रोफेसर और वैज्ञानिक पुरस्कार से ऊपर उठ कर काम करते हैं। पिछले दिनों विख्यात अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने कहा है कि नोबेल पुरस्कार न भी मिलता तो भी वे यह नहीं सोचते कि उनका जीवन व्यर्थ चला गया। उनका कहना है कि पुरस्कार के अलावा जीवन में और भी कई बड़े लक्ष्य होते हैं। हालांकि पुरस्कार अच्छी चीज है। उत्साह बढ़ता है। लेकिन यह भी सच है कि नोबेल न भी मिला होता तो भी उन पर फर्क नहीं पड़ता।

अमर्त्य सेन ने पिछले दिनों बंगाल के बीरभूम जिले में अपने निवास पर मीडिया से बातचीत में कहा कि नोबेल पुरस्कार में उन्हें जो राशि मिली थी उससे उन्होंने प्रतीची ट्रस्ट की स्थापना की। यह ट्रस्ट बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और परोपकार के लिए कार्य करता है। सेन ने कहा कि पुरस्कार न भी मिला होता तो उनका जीवन बेकार नहीं जाता। महर इस पुरस्कार में पैसा मिला तो वे बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए कुछ कर पाए।

अर्थशास्त्री सेन ने यह भी कहा कि पुरस्कार मिलने या न मिलने के पीछे भाग्य भी काम करता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य काम करना था। उनका लक्ष्य कोई पुरस्कार हासिल नहीं करना था। सेन ने यह भी कहा कि यह पुरस्कार उन्हें गरीबों की समस्याओं को दूर करने और सामाजिक विकल्प के सिद्धांत में उनके योगदान के लिए मिला।

प्रतीची ट्रस्ट की वेबसाइट पर अमर्त्य सेन ने लिखा है कि नोबेल के कारण उन्हें लैंगिक समानता, साक्षरता और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा पर व्यावहारिक रूप से कुछ काम करने का अवसर मिला।

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