-वंदना मौलश्री
हिमालय से ऊँचे
सागर से गहरे,
अंबर की छाया हैं पापा मेरे।
जीवन में उठती ये
खुशियों की लहरें
देने वाले हैं पापा मेरे।
सिर पर उलझन की गठरी,
मन हो तपती दुपहरी
बरगद की छैंया हैं पापा मेरे।
मन में मांगी कोई चाहत हो,
मिलती न राहत हो ।
मंदिर की चौखट हैं पापा मेरे।
गर्व है जिस पर किया,
ये जीवन उनसे है मिला
रगों में दौड़ता लहू हैं पापा मेरे।
वक्त भी जो रूठ जाए,
साथ सबका जो छूट जाए
जीवन की आशा हैं पापा मेरे।
बुरा वक्त जब भी है आया,
साया भी न उसका देख पाया
अकेले वक्त से लड़ने वाले हैं पापा मेरे।
गहरी उदासी में मन हो,
नींदों से अनबन हो ।
प्यारी भरी थपकी हैं पापा मेरे।
बचपन से अब तक,
जीवन है तब तक।
तारों के बीच चांद से हैं पापा मेरे।