– अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’

खुद को पूरा का पूरा खर्च करने से पहले
हर बार बचा कर रखना थोड़ा सा
उस हाथ खर्च की तरह
जो काम आता है आड़े वक्त…

बोलने के पहले डरना मत
अपने ही शब्दों पर
गैर जरूरी सवाल खड़े मत करना
बोले जाने की अहमियत पर रखना भरोसा
अपनी वाकपटुता पर मत करना संशय
स्वयं की ऊब से डरना…

लोगों की बेवजह बेसमय बेसिर-पैर
गलत बातों से डगमगाना मत
डरना गलत को सही मान लेने की
बनती जा रही अपनी अविराम आदत से…

अपने लिए हँसना खिलखिला कर बेपरवाही से
घबराना तो इसलिए कि
मुस्कुराने का भी नहीं करता मन
इस बात से डरना कि
संक्रमित नहीं रहीं अब मुस्कुराहटें…।

विचलित मत होना कि
हटाने पड़े हैं दो कदम पीछे
हार जाने या गिरने के भय को
मत होने देना हावी
डरना कि पहला कदम उठाने की
शक्ति क्षीण हो चली है…

इस भ्रम में मत रहना कि
जीने के लिए पड़ी है पूरी उम्र
जीवित रहने की जिजीविषा को जिन्दा रखना
जीना प्रत्येक क्षण
कि यही शर्त है जीने की…।

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