-वंदना मौलश्री

मर जाओगे इक दिन यूं ही
पैसे चार कमाने में।
नानी याद मगर आयेगी
साथ उसे ले जाने में।।

मिलते ही वो हमसे बोला
तुम सा कौन जमाने में।

हमसे मिलने आ जाना
तुम चंदा के चौबारे में ।
हम भी रस्ता देखेंगे संजा के
शामियाने में।।

सागर में तुम दौड़ लगा दो मछली
पकड़ो नाले में।
सड़कों पर तुम नाव चला दो
पिक्चर देखो थाने में।।

बिन सरगम तुम राग बना
लो आग लगा दो पानी में।
पत्तों के तुम साज बना दो
पतझड़ राग बजाने में।।

सुन कर मेरी शेर गजल के हर सूरत हैरानी में।
आता है आनंद मुझे तो हंसने और हंसाने में।।

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वंदना मौलश्री साहित्य के विविध आयामों को रचती हैं। वे पर्यावरण संरक्षण में विशेष रुचि रखती हैं। इन्होंने हिंदी साहित्य और समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। वंदना सामाजिक विषयों पर लिखने के अलावा कविताएं और गजल भी लिखती रही हैं।

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