जासूस डेस्क
नई दिल्ली। जासूसी करने में अगर चीन और अमेरिका आगे हैं, तो रूस भी कोई पीछे नहीं है। दो साल पहले 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तो रूस ने कई गुर्गे अपने दुश्मन के पीछे लगा दिए। वहीं विरोध में गोलबंद हो रहे अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ अपना जासूसी अभियान तेज कर दिया है। रूस ने कहा है कि वह यूरोपीय देशों में घपसपैठ करने जा रहा है। अपना खुफिया आपरेशन करने के लिए छद्म नेटवर्क का भी प्रयोग करेगी। रूस की इस हरकत से पश्चिम देशों में चिंता बढ़ गई है।
कई देशों में रूस के जासूसों की घुसपैठ को लेकर सुरक्षा विशेषज्ञ चिंता जता चुके हैं। ब्रिटेन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि रूस की सैन्य खुफिया एजंसी जीआरयू विशेष बलों के सैनिकों की भर्ती और प्रशिक्षण में बदलाव करने जा रही है। रूस आखिर किस तरह का अभियान चलाना चाहता है? सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों की हत्या कराने से लेकर विदेशों में चुनाव के दौरान हस्तक्षेप कर सकता है।
रूस चाहता है कि यूक्रेन पर हमले का कोई देश विरोध न करे। इस मुद्दे पर बन रही पश्चिमी देशों की एकता को तोड़ने और यूक्रेन को मिल रहे वैश्विक समर्थन को कमजोर करना चाहता है। इसके लिए वह जासूसी हथकंडे को भी नीचता के हद तक अपनाना चाहता है। आरोप है कि रूस ने ही यूक्रेन भाग गए एक रूसी पायलट की हत्या कराई थी। पार्किंग में गोली से छलनी शव मिला था। इस हत्या के बाद मालूम हुआ कि रूस खामोशी से अपना जासूसी अभियान शुरू कर चुका है। इसके बाद कई यूरोपीय देशों ने क्रेमलिन के संदिग्ध जासूसों को देश से निकाल दिया था। किंग्स कॉलेज लंदन के युद्ध अध्ययन विभाग का कहना है कि रूसी जासूसों की क्षमता को कमजोर जरूर किया गया, मगर वे पहले से अधिक शक्तिशाली हैं।
रूस की जासूसी इस कदर है कि उसने जर्मन वायुसेना के अधिकारियों के बीच फोन कॉल में सेंध लगाई थी जिसमें यूक्रेन को लंबी दूरी की मिसाइलों की आपूर्ति पर बात हो रही थी। पता चला है कि रूस की जासूसी एजंसियां दूर से ही अपना काम तेजी से कर रही हैं। मगर उसका पर्दाफाश भी हो रहा हैं। पोलैंड जैसे देश ने भी इसे पकड़ा था।