– प्रतिभा नागपाल

ऐ आसमान जिम्मेदारियों का
बोझ है तुम पर
कब बरसना है, कहां बरसना है
रंगों को कब अपने कैनवास पर बिखेरना है।

सुबह की लालिमा और
दिन का पीला चमकीला पहर।
रात की चादर पर तारों को टांकना।
और फिर अगले दिन की तैयारी में जुटना।

सुबह का सूरज और रात का चांद-
नभ छोर पर ही सजता है।
कभी छुपा लेते पहलू में चांद को
तो कभी सूरज को बादलों का
जोड़ा पहनाते हो।

धरती की खुशी भी तो तुम पर है।
तपती धरती को भिगोना
तो कभी ओस की चादर ओढ़ाना।
मानना पड़ेगा कि
बखूबी जिम्मेदारी निभाते हो।
क्षितिज पर मुलाकात कर लेते हो धरती से।
मानो सबसे नजर बचा मिलते हो प्रियतमा से।
ये सदियों पुराना लगाव है तुम्हारा।
दूरियां भले ही हों पर तुम दोनों पूरक हो…

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