-डॉ. परमजीत ओबराय
वर्षा के दिन देख सहसा
कुछ कीट पतंगे,
मन हो जाता है व्यग्र।
सोच कर यह
कि ये भी थे
कभी उन जैसे।
आज हमें है
घृणा उनसे,
कभी उन्हें भी
होती होगी हमसे,
जब वे थे मनुष्य।
घृणा का यह चक्र-
दिन-प्रतिदिन
होता जा रहा है वक्र।
जासूस जिंदा है, एक कदम है जासूसी लेखन की लुप्त हो रही विधा को जिंदा रखने का। आप भी इस प्रयास में हमारे हमकदम हो सकते हैं। यह खुला मंच है जिस पर आप अपना कोई लेख, कहानी, उपन्यास या कोई और अनुभव हमें इस पते jasooszindahai@gmail.com पर लिख कर भेज सकते हैं।
-डॉ. परमजीत ओबराय
वर्षा के दिन देख सहसा
कुछ कीट पतंगे,
मन हो जाता है व्यग्र।
सोच कर यह
कि ये भी थे
कभी उन जैसे।
आज हमें है
घृणा उनसे,
कभी उन्हें भी
होती होगी हमसे,
जब वे थे मनुष्य।
घृणा का यह चक्र-
दिन-प्रतिदिन
होता जा रहा है वक्र।