जासूस डेस्क
नई दिल्ली। यह खबर डरा देने वाली है। खबर है कि हमारी पसंद-नापसंद संबंधी जानकारियां टेलीमार्केटिंग कर रहे और कॉल सेंटर के पास हैं। हम किस हवाई जहाज में जाते हैं। किस रेस्तरां में खाना खाते हैं। किस कंपनी का बीमा लेते हैं। किस कंपनी का म्युचुअल फंड खरीदते हैं या कौन सा ब्रॉडबैंड कनेक्शन रखते हैं। इस तरह की हमारी छोटी से छोटी जानकारियां जमा की जा रही हैं और ये बिक रही हैं। पिछले दिनों दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट ने सभी को चौंका दिया है।
अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि टेलीमार्केटिंग कंपनी में काम करने वाले को रोज करीब सौ लोगों के फोन नंबर दिए जाते हैं। ये वो लोग होते हैं जिन्होंने हाल-फिलहाल फ्लैट खरीदा हो या बेचा हो या फिर किराए पर लिया हो। फिर इन नंबरों पर कॉल किया जाता है। पता चला कि इनमें दस फीसद ऐसे लोग थे जिन्होंने दलालों से संपत्ति खरीदी या बेची। इस काम के लिए टेलीमार्केटिंग कर्मी को वेतन के अलावा अतिरिक्त भत्ते भी दिए जाते हैं।
यानी ऐसी जानकारियां हासिल करने के लिए और अपना डाटाबेस बनाने के लिए ये कंपनियां काम करती हैं। इसके लिए कुछ कर्मियों को दस हजार रुपए तक मिल जाते हैं। ये जानकारियां इंटीरियर डिजाइनर, प्रॉपर्टी डीलर और इंटरनेट कंपनियों तथा सर्वे कंपनियों के काम की होती हैं।
कहा जा रहा कि डाटा बेचे जाने से उपभोक्ताओं की निजता का हनन होता है। लोगों की नजर में उनकी निजी जानकारियां लीक हो रही हैं। दूसरी ओर इसकी आड़ में एक बड़ा धंधा फल-फूल रहा है। टेलीमार्केटिंग लक्ष्य निर्धारित कर काम कर रही हैं। मार्केट रिसर्च के नाम पर किया जाने वाला यह काम संगठित व्यवसाय तो है ही, मगर लोगों की चिंता कहीं ज्यादा है। उम्मीद की जा रही है कि डिजिटल डाटा संरक्षण कानून आने के बाद निजी जानकारियां सुरक्षित रहेंगी। किसी का कितना डाटा कोई कितने समय तक रख पाएगा, इसकी सीमा तय होगी।
* टेलीमार्केटिंग कंपनियां खरीद रही हैं लोगों की निजी जानकारियां